tag:blogger.com,1999:blog-67723562024-02-03T14:10:11.211+05:30Gaurav Kanoongo's BlogThings about my life, and what I like in technology, here I will share it with you.Gaurav Kanoongohttp://www.blogger.com/profile/01463437357923420314noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6772356.post-1109816262728301522005-03-03T07:45:00.002+05:302008-08-29T13:53:15.195+05:30चिया<div style="text-align: center;"><span style="font-size:180%;">चिया<br /></span></div><br /><span style="font-size:130%;">हमारा बड़ा बेटा चिया<br />अपनी उम्र बढने के साथ साथ<br />अजीबोगरीब, अकल्पनीय बातों से<br />अचम्भे में डालने लगा था।<br /><br />उसने जब बोलना शुरु किया<br />माँ को माँ न कहकर<br />मिन्ना कहा था<br />और मुझे इन्ना।<br /><br />नये शब्द अनजाने अर्थ<br />सालों साल तक जिज्ञासु बने हम दोनों<br />भटकते रहे थे शब्दों और अर्थों की दुनिया में।<br /><br />बच्चे के मुंह से प्रथम बार निकले<br />मिन्ना शब्द की सार्थकता, अर्थ खोजने<br />गये थे हम दोनों किताबों के जंगल में<br />मगर सारे प्रयत्न हो रहे थे व्यर्थ।<br /><br />एक दिन अनायास उसी ने खोजा 'मिन्ना' का अर्थ<br />सबको बताया जर्मन भाषा में<br />सबसे प्यारे व्यक्ती को<br />यानी मोस्ट लवेबल परसन को<br />मिन्ना कहते हैं।<br /><br />हमें अपने विश्वासों, संस्कारों से लगा<br />शायद किसी जर्मन आत्मा का पुनर्जन्म है।<br /><br />इसी तरह पोने दो साल की छोटी सी उम्र में<br />करने लगा ज़िद स्कूल जाने की<br />अपनी दूध की बोतल के साथ<br />हमने मानी उसकी बात<br />भेजा बाबागाड़ी में राधा-गीता के साथ।<br /><br />नौ-दस साल की उम्र में<br />खेल-खेल में पकड़ लिया<br />आधुनिक खिलोना 'कम्प्यूटर'<br />जिसका तब लोगों ने नाम भर सुना था<br />वो आज सबसे अच्छा दोस्त है उसका<br />और हमारे जी का जंजाल भी<br />आजकल वह उसी अकेले के साथ रहता है<br />निर्जन में।<br /><br />वह विधिवत पढ़ा भी कम्प-यू-टीच में<br />उसी खेलने की उम्र में<br />और पढ़ाने भी लगा था बचपन में<br />अपनी उम्र से चार गुना बड़ों को।<br /><br />वह जन्म से ही अत्यंत संवेदी और भावुक है<br />ढाई-तीन साल की उम्र में दोस्त बन गया था मेरा<br />हम दोनों घूमने जाने लगे पार्क में<br />रंगबिरंगे खिले-खिले फूल और<br />उन पर उड़ती रंगबिरंगी तितलियाँ<br />अब उसे लुभातीं<br />वह दौड़ता, पकड़ना चाहता तितलियाँ<br />गौर से देखता फूलों को<br /><br />पास से गुजरती ट्रेन भी<br />अब उसे आकृषित करने लगी।<br />अब वह निरुत्तर करने लगा<br />अजीबोगरीब सवाल पूछकर<br />यह फूल फुछेद क्यों है?<br />वह सालों साल तक<br />सफेद को फुछेद ही कहता रहा<br /><br />लाख समझाने पर भी<br />ट्रेन को वह कू-गाड़ी ही कहता<br />जो मुझे दिखानी पड़ती थी बिना नागा<br />कड़कती ठंड, गिरती बरसात या उबलती गर्मी में भी<br />अपनी सायकल से ले जाकर।<br />फिर उसने अपने शौक को पूरा किया था<br />झेलम एक्सप्रेस रुकने के पहिले दिन<br />स्वागत किया था फूलमाला से<br />रेल के इंजिन को, रेल के ड्राईवर को, रेल को<br />फूलों की माला पहिनाकर<br />उस समय के सांसद ने भी ढोल-बाजों के साथ<br />झंडी दिखाकर विदा किया था<br />चिया की कू-गाड़ी को।<br /><br />फिर उस दिन से कू गाड़ी की बात खतम हो गयी थी<br />लेकिन फूलों के अनुत्तरित प्रश्न बाकी थे।<br />यह फूल फुछेद क्यों है, और यह लाल क्यो<br />यह बड़ा-बड़ा पीला क्यों है?<br />इनके जवाब मेरे पास, न जब थे न अब हैं,<br />शायद उसी ने खोज लिये होंगे अब इंटरनेट पर।<br /><br />पहली बार जब हाईवे पर चलता<br />सचमुच का हाथी देखा<br />तो बड़ा खुश हुआ उसे देखकर<br />घर आकर जब याद आयी थी हाथी की<br />बहुत रोया था, मचला था,<br />मिन्ना हाथी लाओ मिन्ना हाथी लाओ<br />तब बड़ी मुश्किल में चुप हुआ<br />संयोग से सड़क पर जाती हुई<br />मोटी भैंस को पीछे से दिखाने पर।<br /><br />ऐसे हमने अपनी जान छुड़ाई थी<br />भैंस को हाथी बताकर<br />और भैंस से ही काम चलता रहा<br />बहुत दिनों तक हाथी की याद आने पर।<br /><br />वह अपनी मिन्ना को<br />आज पच्चीस का होने पर भी मिन्ना ही कहता है<br />उनकी कीमती साड़ी के पल्लू से<br />अब भी मुंह पौंछता है<br />उसकी देखा-देखी बेटू-छोटू भी मिन्ना कहते हैं<br />और अब तो सबके दोस्त भी मिन्ना ही कहते हैं।<br /><br />मेरे से अब वह कुछ नहीं कहता है<br />न अब मेरा दोस्त है<br />अपने सब दोस्तों से आजकल उसने कुट्टी कर रखी है,<br />मुझ से भी।<br /><br />यह कुट्टी चलती रहती है<br />उनसे जिन्हे वो बहुत चाहता है<br />जो उसके ढंग से नहीं चलते हैं।<br />मुझसे भी चल रही है कुट्टी बहुत दिनों से<br />और मैं भी इस फिराक में हूँ कि<br />अब उससे तो दोस्ती शायद संभव नहीं<br />पर मुझे करना पड़ेगी<br />उसी तरह पार्क में घुमाने या कू-गाड़ी दिखाने<br />भविष्य में उसके बेटे या बेटी से<br />जो कुछ दिनों तक तो मुझसे कुट्टी नहीं करेंगे और<br />अच्छे दोस्त बनकर रहेंगे,<br />मुझसे कहानियाँ सुनेंगे और सुनायेंगे<br />तब तक शायद मेरी कुट्टी क्या छुट्टी की ही उमर हो जायेगी।<br /><br /></span><div style="text-align: right;"><span style="font-size:130%;">- <span>जगदीश</span> शरण कानूनगो<br />जून २००४</span></div>Gaurav Kanoongohttp://www.blogger.com/profile/01463437357923420314noreply@blogger.com4