Thursday, March 3, 2005

चिया

चिया

हमारा बड़ा बेटा चिया
अपनी उम्र बढने के साथ साथ
अजीबोगरीब, अकल्पनीय बातों से
अचम्भे में डालने लगा था।

उसने जब बोलना शुरु किया
माँ को माँ न कहकर
मिन्ना कहा था
और मुझे इन्ना।

नये शब्द अनजाने अर्थ
सालों साल तक जिज्ञासु बने हम दोनों
भटकते रहे थे शब्दों और अर्थों की दुनिया में।

बच्चे के मुंह से प्रथम बार निकले
मिन्ना शब्द की सार्थकता, अर्थ खोजने
गये थे हम दोनों किताबों के जंगल में
मगर सारे प्रयत्न हो रहे थे व्यर्थ।

एक दिन अनायास उसी ने खोजा 'मिन्ना' का अर्थ
सबको बताया जर्मन भाषा में
सबसे प्यारे व्यक्ती को
यानी मोस्ट लवेबल परसन को
मिन्ना कहते हैं।

हमें अपने विश्वासों, संस्कारों से लगा
शायद किसी जर्मन आत्मा का पुनर्जन्म है।

इसी तरह पोने दो साल की छोटी सी उम्र में
करने लगा ज़िद स्कूल जाने की
अपनी दूध की बोतल के साथ
हमने मानी उसकी बात
भेजा बाबागाड़ी में राधा-गीता के साथ।

नौ-दस साल की उम्र में
खेल-खेल में पकड़ लिया
आधुनिक खिलोना 'कम्प्यूटर'
जिसका तब लोगों ने नाम भर सुना था
वो आज सबसे अच्छा दोस्त है उसका
और हमारे जी का जंजाल भी
आजकल वह उसी अकेले के साथ रहता है
निर्जन में।

वह विधिवत पढ़ा भी कम्प-यू-टीच में
उसी खेलने की उम्र में
और पढ़ाने भी लगा था बचपन में
अपनी उम्र से चार गुना बड़ों को।

वह जन्म से ही अत्यंत संवेदी और भावुक है
ढाई-तीन साल की उम्र में दोस्त बन गया था मेरा
हम दोनों घूमने जाने लगे पार्क में
रंगबिरंगे खिले-खिले फूल और
उन पर उड़ती रंगबिरंगी तितलियाँ
अब उसे लुभातीं
वह दौड़ता, पकड़ना चाहता तितलियाँ
गौर से देखता फूलों को

पास से गुजरती ट्रेन भी
अब उसे आकृषित करने लगी।
अब वह निरुत्तर करने लगा
अजीबोगरीब सवाल पूछकर
यह फूल फुछेद क्यों है?
वह सालों साल तक
सफेद को फुछेद ही कहता रहा

लाख समझाने पर भी
ट्रेन को वह कू-गाड़ी ही कहता
जो मुझे दिखानी पड़ती थी बिना नागा
कड़कती ठंड, गिरती बरसात या उबलती गर्मी में भी
अपनी सायकल से ले जाकर।
फिर उसने अपने शौक को पूरा किया था
झेलम एक्सप्रेस रुकने के पहिले दिन
स्वागत किया था फूलमाला से
रेल के इंजिन को, रेल के ड्राईवर को, रेल को
फूलों की माला पहिनाकर
उस समय के सांसद ने भी ढोल-बाजों के साथ
झंडी दिखाकर विदा किया था
चिया की कू-गाड़ी को।

फिर उस दिन से कू गाड़ी की बात खतम हो गयी थी
लेकिन फूलों के अनुत्तरित प्रश्न बाकी थे।
यह फूल फुछेद क्यों है, और यह लाल क्यो
यह बड़ा-बड़ा पीला क्यों है?
इनके जवाब मेरे पास, न जब थे न अब हैं,
शायद उसी ने खोज लिये होंगे अब इंटरनेट पर।

पहली बार जब हाईवे पर चलता
सचमुच का हाथी देखा
तो बड़ा खुश हुआ उसे देखकर
घर आकर जब याद आयी थी हाथी की
बहुत रोया था, मचला था,
मिन्ना हाथी लाओ मिन्ना हाथी लाओ
तब बड़ी मुश्किल में चुप हुआ
संयोग से सड़क पर जाती हुई
मोटी भैंस को पीछे से दिखाने पर।

ऐसे हमने अपनी जान छुड़ाई थी
भैंस को हाथी बताकर
और भैंस से ही काम चलता रहा
बहुत दिनों तक हाथी की याद आने पर।

वह अपनी मिन्ना को
आज पच्चीस का होने पर भी मिन्ना ही कहता है
उनकी कीमती साड़ी के पल्लू से
अब भी मुंह पौंछता है
उसकी देखा-देखी बेटू-छोटू भी मिन्ना कहते हैं
और अब तो सबके दोस्त भी मिन्ना ही कहते हैं।

मेरे से अब वह कुछ नहीं कहता है
न अब मेरा दोस्त है
अपने सब दोस्तों से आजकल उसने कुट्टी कर रखी है,
मुझ से भी।

यह कुट्टी चलती रहती है
उनसे जिन्हे वो बहुत चाहता है
जो उसके ढंग से नहीं चलते हैं।
मुझसे भी चल रही है कुट्टी बहुत दिनों से
और मैं भी इस फिराक में हूँ कि
अब उससे तो दोस्ती शायद संभव नहीं
पर मुझे करना पड़ेगी
उसी तरह पार्क में घुमाने या कू-गाड़ी दिखाने
भविष्य में उसके बेटे या बेटी से
जो कुछ दिनों तक तो मुझसे कुट्टी नहीं करेंगे और
अच्छे दोस्त बनकर रहेंगे,
मुझसे कहानियाँ सुनेंगे और सुनायेंगे
तब तक शायद मेरी कुट्टी क्या छुट्टी की ही उमर हो जायेगी।

- जगदीश शरण कानूनगो
जून २००४